रंजना कुमारी
हाल ही में विश्व बैंक द्वारा भारत में जारी दहेज प्रथा पर की गयी अध्ययन रिपोर्ट आयी है. इस अध्ययन में वर्ष 1960 से वर्ष 2008 तक ग्रामीण भारत में हुई 40,000 शादियों का अध्ययन किया गया. इसके अनुसार 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया, जबकि यह वर्ष 1961 से देश में गैरकानूनी है. दहेज के कारण घरेलू हिंसा की खबरें भी आती रहती हैं. आज भले ही लड़कियां आत्मनिर्भर हो चुकी हैं, पर उनको अपने लिए निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जा रहा है।
हमारा समाज आज भी महिलाओं को खुद के लिए निर्णय लेने की स्वतंत्रता देने को तैयार नहीं है. इसके लिए माता-पिता विशेष रूप से जिम्मेदार हैं. वे अपनी बेटियों को पढ़ा-लिखा तो रहे हैं, लेकिन शादी के मामले में उन्हें निर्णय नहीं लेने दे रहे हैं. वे स्वयं ही शादी तय करते हैं. जब स्वयं शादी तय करते हैं, तो दहेज देना पड़ता है।
दहेज और कुछ नहीं, पैसों का लालच है. आमतौर पर लोगों की ऐसी मानसिकता होती है कि यदि उन्हें मुफ्त में कुछ मिल रहा हो, तो वे उसे अस्वीकार नहीं करते. दहेज के पीछे की मुख्य वजहों में से यह भी एक है. एक बात और, दहेज लेन-देन में लड़के के माता-पिता जितने जिम्मेदार होते हैं, उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदार लड़की के माता-पिता होते हैं. लड़कियों को केवल शिक्षित करने से काम नहीं चलेगा, जब तक आप उन्हें पूरी तरह स्वतंत्रता नहीं देंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा।
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